Monday, August 16, 2010

जश्न आज़ादी का...!


श्वेता सिंह

हम हिंदुस्तानी हैं...और इसी वजह से आज हम सबने आज़ादी का जश्न भी मनाया..जी हां..आज़ादी के 64वें वर्ष पर सबने दिल खोलकर एक-दूसरे को बधाइयां दीं, एसएमएस भेजें, और मिलते ही मुंह मीठा भी कराया. लेकिन क्या सचमुच हम आज़ाद हो गये हैं..? नहीं, दूसरे त्यौहारों की तरह स्वतंत्रता दिवस भी बस एक दिन के लिए अचानक हमारे अंदर देशभक्ति का भाव पैदा कर देता है और दिन गुजरते ही सारे जज़्बे काफूर हो जाते हैं..
कभी-कभी ऐसा लगता है आजा़दी देश को नहीं सरकार को मिली है. अगर देश आज़ाद है तो फिर सरकार और जनता के बीच इतनी गहरी खाई क्यों है? इतने सालों में सरकार और सरकारी तंत्र में कितने बदलाव आये हैं! जनता को क्या लाभ मिला है. हम कह सकते हैं कि एक विशेष तबके तक आज़ादी का जश्न सिमट कर रह गया है..या यूं कह ले कि पहले हम अंग्रेजों की गुलामी करते थे और अब अपने चुने हुए नेताओं को सलामी देने को मजबूर हैं. वो झण्डा लहराते हैं और हम तालियां बजाते हैं. हालात तब भी ऐसे ही थे और आज भी वैसे ही हैं..कोई विशेष फर्क नहीं आया है... अग्रेजों ने जो किया था हमारे नेता आज उसी राह पर चल पड़े हैं. फर्क इतना है कि अंग्रेज पैसा लूट कर इंग्लैण्ड चले गये और हमारी सरकार के दिग्गज मंत्री वो पैसा आपस में ही लूट कर हजम कर रहे हैं. बावजूद इसके कोई उनके खिलाफ बगावत करने की हिम्मत नहीं करता. कुछ दिन बावेला मचता है, शोर-शराबा होता है. कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति भी होती है..और फिर वही ढाक के तीन पात...नतीजा सिफर...यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. नेता मदारी की तरह खेल दिखाता है और हम तमाशबीन की तरह चुपचाप तमाशा देखते हैं..क्या इसका कोई हल नहीं है?
जो सरकारी महकमों में बैठा है वो राजा (सरकार) और जो बाहर वो प्रजा(भारतीय), और वर्चस्व की लड़ाई आज भी जारी है. अगर ऐसा नहीं है तो देश के हर कोने में किसी भी कारण से सरकार से टकराव क्यों है. कहीं माओवाद तो कहीं आतंकवाद और कहीं महंगाई के खिलाफ लड़ाई जारी है. हर वो पहलू जिससे जनता को सीधे तौर पर मतलब है वो बिगड़ा हुआ क्यों है? सरकारी अफसर की जनता के प्रति जवादेही क्यों नहीं बनती?
हम सभी को पता है कि अगर कोई सरकारी अधिकारी मनमानी करता है तो हम उसके खिलाफ कुछ नहीं कर पाते हैं. क्योंकि सरकारी काम में विघ्न डालना जुर्म है. यह सिर्फ जनता पर लागू होता है. नेता या अफसर बेखौफ होकर घोटाले करते हैं, उन्हें किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है..उन्हें पता है कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है!
सवाल यह है कि जब पैसा जनता का है. और उसे लेकर कोई अगर काम नहीं करता है तो उसे ना करने पर हर्जाना क्यों नहीं भुगतना पड़ता है, क्योंकि वह सरकार है और देश उसका है. जो अपने खून पैसे की कमाई "कर"(टैक्स) के रूप में चुकाती है, वो जनता बेवकूफ है, गलत है..और जो इसका अपने हिसाब से बेज़ा इस्तेमाल करता है वो सही और कुछ भी करने को आज़ाद है..बाकी सब गुलाम...आखिर हम इन मौकापरस्त नेताओं को कब एहसास करा पायेंगे कि वो अपनी मनमानी नहीं कर सकते. हमारी न्यायपालिका इतनी कमजोर क्यों है..आम आदमी जब कोई गलती करता है तो उसे फौरन उसकी सज़ा मिल जाती है, मगर ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकारियों और नेताओं तक कानून के हाथ नहीं पहुंच पाते हैं...उनसे जुड़े मामलों पर फैसला लेने में अदालत को वर्षों लग जाते हैं..और तब तक नेता अपनी मनमानी करता रहता है... नेता बड़े से बड़ा घोटाला करता है, पर कोई उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता है..बेकसुरों को भी अक्सर सज़ा मिल जाती है और जो सालों-साल से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उनके शानो-शौकत में कोई कमी नहीं आती है..महंगाई की मार झेलनी है तो सिर्फ जनता को..नेताओं को भला इतनी फुरसत कहां है जो इस बात की खबर ले कि जनता को उसकी मूलभूत सुविधाएं मिली भी या नहीं..उसकी तो उंगलियां हमेशा ही घी में डूबी रहती हैं. फिर वो आज़ादी का जश्न नहीं मनायेगा तो कौन मनायेगा..
अगर ऐसा है, तो क्यों है..? क्या हमारे पास इतना वक्त बचा है कि हम इस मुद्दे पर विचार करें. शायद नहीं. हम अपनी ज़िंदगी में इतने व्यस्त हैं कि ऐसे मुद्दों पर गौर करने का भी वक्त हमारे पास नहीं रह गया है. और यह चिंता का विषय है!
इन सब हालात में सिर्फ हम बुद्धिजीवियों की क्या ये जिम्मेवारी नहीं बनती की हम अपने परिवेश और संपर्क के उन लोगों को जागरुक करें जो शायद इसे अपनी नियति का हिस्सा मान चुके हैं! 64 साल से पहले के नेताओं ने जो तरीके अपनाये थे, वे आज भी उतने ही मजबूत हैं.. देश को संपूर्ण स्वराज की एक और आह्वान की जरूरत है!! मैं चाहूंगी कि हम सब को एक बार फिर अपने ध्वज के मान के लिए इंकलाब का नारा बुलंद करना होगा!! अगर आप इसे लेख समझ कर भी पढ़ रहे हैं तो भी अपने दिल में ही सही..कृपया दोहराइये "वन्दे मातरम्" और प्रण लीजिये खुद को आज़ाद करने का!!

11 comments:

  1. ऐसी अधुरी आजादी का क्या मतलब? सारगर्भित आलेख अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर..नियमित लिखते रहिएगा..


    डा.अजीत
    www.shesh-fir.blogspot.com
    www.monkvibes.blogspot.com

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  2. sachmuch apki soch badi prasangik hai.....
    ise aazadi nahi kaha ja sakata.

    achha laga aapke vichar jankar.

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  3. बहुत अच्‍छा‍ लिखा। आजादी तो मिल गई पर आजाद कहां हैं हम। कई तरह की गुलामी ने हमें जकड रखा है। लगातार लिखते रहिए। अच्‍छा है।
    अतुल श्रीवास्‍तव
    atulshrivastavaa.blogspot.com

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  4. श्वेता जी,
    आपके विचार तर्कपूर्ण हैं...नयी पोस्ट भी जल्दी लगाइए!

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  5. आपका लेख पढ कर अच्छा लगा, आपने वाकई सही मुद्दा उठाया है, साधुवाद

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  6. अच्छी रचना के लिए आभार. हिंदी लेखन के क्षेत्र में आप द्वारा किये जा रहे प्रयास स्वागत योग्य हैं.
    आपको बताते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है की भारतीय ब्लॉग लेखक मंच की स्थापना ११ फरवरी २०११ को हुयी, हमारा मकसद था की हर भारतीय लेखक चाहे वह विश्व के किसी कोने में रहता हो, वह इस सामुदायिक ब्लॉग से जुड़कर हिंदी लेखन को बढ़ावा दे. साथ ही ब्लोगर भाइयों में प्रेम और सद्भावना की बात भी पैदा करे. आप सभी लोंगो के प्रेम व विश्वाश के बदौलत इस मंच ने अल्प समय में ही अभूतपूर्व सफलता अर्जित की है. आपसे अनुरोध है की समय निकलकर एक बार अवश्य इस मंच पर आये, यदि आपको मेरा प्रयास सार्थक लगे तो समर्थक बनकर अवश्य हौसला बुलंद करे. हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे. आप हमारे लेखक भी बन सकते है. पर नियमो का अनुसरण करना होगा.
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच

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  7. सारगर्भित आलेख !

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  8. स्वागत योग्य विचार, साधुवाद, बहुत अच्छा लिखा ह इन भ्रष्ट राज नेताओं का बस चले तो ये आतंकवादियों के नाम पर स्मारक, सड़कें और बुत बनाने लगे।

    yadi samay mile to dekhiyega jarur aap ki tarah direct dil tak baat pahunchti hai
    http://jan-sunwai.blogspot.com/

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  9. जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित हो रहा है.

    आपको सादर आमंत्रण, कि आप अपनी कोई एक रचना जिसे आप प्रकाशन योग्य मानते हों हमें भेजें ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी किसी एक सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
    यदि संभव हो सके तो इस प्रयास मे आपका सार्थक साथ पाकर, आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर, हमें प्रसन्नता होगी.

    अपनी टिपण्णी से हमारा मार्गदर्शन कीजिये.

    जन सुनवाई jansunwai@in.com

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  10. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! और शानदार प्रस्तुती!
    मैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
    आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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